खुसूर-फुसूर
होनहार के होत चिकने पात…
यह आमजन बयान कर रहे हैं कि यहां जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ निभाने वाली संस्था में होनहारों के यहीं हाल हैं। आमजन के अनुसार हालात ऐसे हैं कि यहां के अफसरों को समस्या और शिकायत का फर्क पता नहीं है। अगर समस्या लेकर महीनों से बार-बार चक्कर काटने के बाद निवेदन स्वीकार नहीं किया जा रहा है और आम आदमी सीएम हेल्प लाईन में आवेदन करता है जिसमें भी वह समस्या का ही उल्लेख करते हुए निदान की मांग रखता है तो अफसर उसे शिकायत कहते हैं । होनहार के होत चिकने पात … सही कह रहे हैं न लोग । जिस संस्था में नवाचार और पता नहीं किन किन योग्यताओं के नाम पर यहां पदस्थ किए गए और उज्जैन की जनता के टैक्स से तनख्वाह पा रहे इन होनहारों को शिकायत और समस्या का अंतर ही पता नहीं हो उनसे आप किस बात की और क्या नवाचार की अपेक्षा रख रहे हैं। एक आध होनहार हो तो उसका उल्लेख किया जा सके…यहां तो आए दिन आमजन एक नया नाम सामने रखते हैं और जब मुद्दा रखा जाता है तो यही सामने आता है कि उज्जैन की जनता का टैक्स सीधे तौर पर नाली में ही डाला जा रहा है उसका रिटर्न योग्यता के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है। एक होनहार ने अभी पूरे उज्जैन को लजाया ही है इस संस्था में रहकर उम्र के पढाव पर ढाबा रोड तक पहुंच चुका है और अधिनस्थ महिला कर्मी को बंगले पर बुलाने का आरोप इस पर ऐसे ही नहीं है। इसके दो साथी भी कुछ ऐसे ही हैं जिनके बयान में वर्दीके साथ सामंजस्य हो गया अन्यथा एक छोटे इंजीनियर साहब की हाल ही में हुई शादी होने से पहले ही टूट जाती। संस्था में दुसरी लाईन की बागड के खेत खाने वाली कहावत को चरितार्थ कर रहीं है। खुसूर-फुसूर है कि अब समय आ चुका है कि स्व वित्तीय संस्थाओं में ऐसे होनहारों के आगमन से पूर्व पूरी तरह से उसकी जांच होना चाहिए। पुरूष हो चाहे महिला प्रति दिन के काम को आनलाईन मासिक रूप से वर्क बुक ली जाकर उसका सत्यापन किया जाना चाहिए। तमाम सुविधा लेने के बाद इनके रिटर्न को देखें या आरटीआई में इनके प्रति दिन के काम की जानकारी ली जाए तो इन होनहारों के चिकने पात ही नहीं कार्य भी पूरे कोरे ही मिलेंगे।
